हमने सुना था
मजधार में डूबती हैं कश्तियाँ
पर, देखा न कभी कि
मजधार की ओर जाती भी हैं कश्तियाँ
हुए अपनी कश्ती पर सवार
जीवन नदिया की बह रही थी धार
दिशा ली, अनुकूल धार
चल पडे, गुनगुनाते हुए खेवैये का सार
लहरों में हिचकोले खाती
कश्ती मेरी बढती जाती
राह में मिले कई मुसाफिर
पूछा, "किधर है तेरी मंजिल"
अहं ने मेरे दिया जवाब कुछ ऐसा
कि, "निकला हूँ मैं तो
ढूँढने को मजधार"
घबराकर सबने देखा
अथक समझाया, मैं न माना
"मूरख है तू, हारेगा
या तो लौट जा, या डूब जायेगा"
जब होंश आया
कश्ती थी जा लगी किनार
न कश्ती मेरी, न मेरा किनार
न जाने, कब आ गया मजधार
न जाने, कब टूटा मेरा अहंकार
डूब गयी थी मेरी नैया
डूब गया मेरे सपनों का संसार
मजधार में डूबती हैं कश्तियाँ
पर, देखा न कभी कि
मजधार की ओर जाती भी हैं कश्तियाँ
हुए अपनी कश्ती पर सवार
जीवन नदिया की बह रही थी धार
दिशा ली, अनुकूल धार
चल पडे, गुनगुनाते हुए खेवैये का सार
लहरों में हिचकोले खाती
कश्ती मेरी बढती जाती
राह में मिले कई मुसाफिर
पूछा, "किधर है तेरी मंजिल"
अहं ने मेरे दिया जवाब कुछ ऐसा
कि, "निकला हूँ मैं तो
ढूँढने को मजधार"
घबराकर सबने देखा
अथक समझाया, मैं न माना
"मूरख है तू, हारेगा
या तो लौट जा, या डूब जायेगा"
जब होंश आया
कश्ती थी जा लगी किनार
न कश्ती मेरी, न मेरा किनार
न जाने, कब आ गया मजधार
न जाने, कब टूटा मेरा अहंकार
डूब गयी थी मेरी नैया
डूब गया मेरे सपनों का संसार
mind blowing...this one can not feel bored...u should continue with ur poem.....realy good collection.........
ReplyDeletedear really ur poem is very nice.i think u r a gud poet.continue
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