Thursday, July 20, 2006

मेरी प्रियतमा

प्रकृति की एक अद्भुत रचना
काव्य कला का सार हो तुम
प्रेम, दया और क्षमा की
सरिता का संचार हो तुम
सुंदरता की प्रतिमूर्ती हो
ज्ञान खड्ग की धार हो तुम
गौर वर्ण स्वयं उमा का
संतोषी का अवतार हो तुम
युद्धभुमि की शक्ति हो
शांति का आधार हो तुम
हिमालय की सी अचल, हे सखे
दृढता की दीवार हो तुम
यह तो बस एक निमित्त मात्र है
करूणा की पुकार हो तुम
शब्दों की सीमा से परे
संवेदनाओं का संसार हो तुम