शब्द खोये से क्यूँ हैं,
शायद किसी की तलाश में हैं
जब कभी उस पार झाँकने की कोशिश करता हूँ मैं
एहसास एक ऐसा झकझोर जाता है मुझे
उन्हें सामने न देख कर
कई टुकड़ों में बिखर जाता हूँ मैं
कई बार कोशिश की,
यादों को शब्दों में पिरोने की
शायद, वापस जा सकूं,
जहाँ अपने रास्ते अलग हुए थे
कशिश वो सीने में आज भी है,
शायद शब्द इसलिए कतरा रहे हैं
इतना दर्द संभाल कर भी
जीता रहा हूँ मैं इत्म्नान से
शब्दों को डर है मेरे हौसले से
शायद उन यादों के भंवर में
एक बार फिर टूट कर बिखर जाऊँगा मैं ।
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