Monday, July 02, 2007

मेरी गजल

आज सुबह, अरूण लालिमा खिडकी से आयी
हो गया सवेरा, चिडियाँ चहचहायी
मैने, मेज से तुम्हारी तस्वीर उठायी
कर लिया आलिंगन, नज़रें शरमायीं
मंद सी एक मुस्कान थी खिल आयी
अचानक, गज़ल लिखने की चाह जग आयी

काग़ज, कलम, दवात लिये बैठा
सुबह से शाम थी हुइ आयी
रंग गए बहुत सारे पन्ने
पर वो बात नहीं आ पायी
जब था मैने होंश संभाला, पहली बार
काग़ज पर लेखनी दौडायी
रंग गया था वो पन्ना
यह बात आज फिर याद थी आयी
एहसास हुआ कुछ ऐसा
जीवन दिये की बाती हो तुम
मैं शहज़ादा, शहज़ादी हो तुम
मैं आसमान का सूरज हूँ, मेरी किरणें तुम
तुम ही मेरी कविता हो,
गज़लों का आधार तुम
इन पन्नों पर क्या लिखता मैं
जब स्वर भी तुम, स्वरश्रिंगार भी तुम

1 comment:

shanky said...

m ur fan 4 al these poems...plz keep postin thm...i luv 2 read thm